भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
झुलन झुलाए झाउ झक् झोरे / काजी नज़रुल इस्लाम
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:03, 12 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=काजी नज़रुल इस्लाम |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पन्ना बनाया)
झुलन झुलाए झाउ झक् झोरे, देखो सखी चम्पा लचके,
बादरा गरजे दामिनी दमके।
आओ बृज की कुँआरी ओड़े नील साड़ी,
नील कमल-कली के पहने झुमके।।
हरे धान की लव में हो बाली,
ओड़नी रंगाओ सतरंगी आली,
झुला झुलो डाली डाली,
आओ प्रेम कुँआरी मन भाओ,
प्यारे प्यारे सुरमे सावनी सुनाओ।
रिमझिम रिमझिम पड़ते कोआरे,
सुन पिया पिया कहे मुरली पुकारे,
वही बोली से हिरदय खटके।।