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मतीरा.. / कन्हैया लाल सेठिया
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मरू मायड़ रा मिसरी मधरा
मीठा गटक मतीरा।
सौनैं जिसड़ी रेतड़ली पर
जाणै पत्रा जड़िया,
चुरा सुरग स्यूं अठै मेलग्यो
कुण इमरत रा घड़िया ?
आं अणमोलां आगै लुकग्या
लाजां मरता हीरा।
मरू मायड़ रा मिसरी मधरा
मीठा गटक मतीरा।
कामधेणु रा थण ही धरती
आं में ढूया जाणै,
कलप बिरख रै फल पर स्यावै
निलजो सुरग धिंगाणै।
लीलो कापो गिरी गुलाबी
इन्द्र धणख सा लीरा।
मरू मायड़ रा मिसरी मधरा
मीठा गटक मतीरा।
कुचर कुचर नै खुपरी पीवो
गंगाजळ सो पाणी,
तिस तो कांई चीज भूख नै
ईं री लूंट भजाणी,
हरि-रस हूंतो फीको, ओ रस
जे पी लेती मीरां !
मरू मायड़ रा मिसरी मधरा
मीठा गटक मतीरा।