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दूबड़ी / कन्हैया लाल सेठिया

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दूबड़ी, कोसां कोस पसरगी।
ताल तळायां डैरां सैरै फट बारोकर फिरगी,
दूबड़ी कोसां कोस पसरगी।

पड़तां पैली छांट जमीं रो
घूंधटियो आ खोल्यो,
आंध्यां नै के गिणै, दिखावै
ऊभी ऊभी ठोल्यो,

कांटां बांठां खाडां खोहां सै मैं बड़ी निसरगी,
घणी अचपळी अपड़ै कांईं भाज डूंगरा चढ़गी,
दूबड़ी कोसां कोस पसरगी।

कवै तावड़ो रीसां बळतो आ तो घणी इतरगी,
दूबड़ी कोसां कोस पसरगी।

ज्यूं ज्यूं चींथै जीव जिनावर
ईं रो हेत झबळकै,
हुई पीड़ स्यूं लीली पण आ
मधरी मधरी मुळकै,
आ जीणै रै मोद कोड़ में मरणो साव बिसरगी,
ईं रै आगै मिनख मरदगी जाबक फीकी पड़गी,
दूबड़ी कोसां कोस पसरगी।

बड़ रोहीड़ा कैर खेजड़ा
ईं रा बड़गर भाई
सैं रै लागै पगां सरावां
ईं री के लुळताई ?

ईं गम खाणै पाण लाण आ लूंठा सागै निभगी,
सदा सुहागण नित बड़भागण ईं री जूण सुधरगी,
दूबड़ी कोसां कोस पसरगी।