भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीत चिड़कल्यां / कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:20, 16 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कन्हैया लाल सेठिया |संग्रह=मींझर ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुगती मिलसी पछै जीवड़ा
पैली बंधणो पड़सी।

लट्टू नै गत मिली पड़ी जद
जा गळबाथ्यां जाळी,
बाण अकासां पूग्यो जद आ
चिमठी चोटी झाली,

कंवळ बणै बो, कंठा तांई
मझ कादै में रहसी।
मुगती मिलसी पछै जीवड़ा
पैली बंधणो पड़सी।

जोत पकड़ में आ बाती री
सूरज स्यूं जा मिलगी,
लौ नै छोड़ जकी चिणगारी
चाली बा ही रूळगी,

घड़ो बणै बो, गळ फांसी खा-
आंधै कुवै उसरसी-
मुगती मिलसी पछै जीवड़ा
पैली बंधणो पड़सी।

बैठ्यो नीर हिंयाळै माथै
पाछौ समदां आवै,
मरजादां में बंध्या बिना कुण
सुरगां नेड़ो जावै ?

गीत चिड़कल्यां सुर री सांकल
थां नै पहरयां सरसी।
मुगती मिलसी पछै जीवड़ा
पैली बंधणो पड़सी।