भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बूंद-बूंद सै खाली मटका भर्या करै / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:10, 17 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महावीर प्रसाद 'मधुप' |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पन्ना बनाया)
बूंद-बूंद सै खाली मटका भर्या करै
माणस के बिन माणस नै के सर्या करै
चाहे उसनै बिना मौत मरणा पड़ज्या
भूखा नाहर घास कदै ना चर्या करै
मजनू-सा मंजिल का जो आशिक बणज्या
वो मारग के काँट्या सै कद डर्या करै
हथियारां के घाव किसै दिन भरज्यां सै
पण बोली का घाव कदे ना भर्या करै
अपणै दुख-दरयां की जिन्ता सबनै हो
माणस वो जो पीड़ पराई हर्या करै
असल सूरमा की छाती छलणी हो ज्या
पीठ दिखा कै, पग पीछै ना धर्या करै
जिसनै अपणा वतन प्राण तैं प्यारा सै
तन-मन-धन बस आप निछावर कर्या करै
वीर एक दिन मरैक अमर शहीद बणै
रोज-रोज ना मौत स्यार की मर्या करै
‘मधुप’ करारी चोट करम पर जद पड़ज्या
झरणा बण, तब झर-झर कविता झर्या करै