Last modified on 17 जून 2014, at 13:00

उम्मत हुई अखाड़ा / संजय चतुर्वेद

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:00, 17 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय चतुर्वेद |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

धरमभेद का कठिन कुल्हाड़ा,
कैसी ठोस कौम बंगाली उसे बीच से फाड़ा
क्या कश्मीरी क्या मलयाली सबका किया कबाड़ा
हम इसराइल हम इसमाइल हम ही खींचें बाड़ा
इबराहिम चिल्लाय कपूतो उम्मत हुई अखाड़ा
मारें मरें छातियाँ कूटें चौकस चलै नगाड़ा
दिल दिमाग़ में बम रक्खे हैं बाहर फैला जाड़ा ।