भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गांधी-मारग / कुंदन माली
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:27, 20 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुंदन माली |संग्रह=जग रो लेखो / कुं...' के साथ नया पन्ना बनाया)
जो
सत्ताइस बरसां सूं
गिद्ध री निजरां में
चुभतौ कांटो कैवाय है
जो
रंगभेद रा
समंदर में
लगोतार कांकरा
फेंकतो रैयो है
जो
ठेठ सूं ठेठ तक
औपनिवैषिकता रै
पीवणा सांप नै
पिटारी में
बंद करवा री खातिर
आपणा केस
पकाय बैठौ है
जो नुंवा रूंख माथै
बैठनै बराबरी रा
रसाल़ बांटणा
चावै है
जिणरी
अेक आवाज पै
दुनिया दौड़ी-दौड़ी
आवै है
कुण है वो
कुण
आजादी रौ उणियारो
उजालै़ री ओल़खाण
मिनख-धरम री पिछाण
पंचषील रौ कबूतर
के पछै
फकत नेल्सन मंडेला