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पीपल-गाथा / कुंदन माली

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आपणै जमानै रै
नामी कवि सरीखा
ऊभा
पीपल़ रै
अणी रूंख
झेलिया है
वगत रा
जबरा थपेड़ा
मिनखमार अंधड़
अणी रे
सरीर सूं
उतरी है
जमीन माथै
कड़कड़ावती ठंड
बिजली
बरखा अर
पतझड़

अणी ज’री
छायां में
खेलती रैई
गाँव री
टाबरटोली़
अर देखतां-देखतां
होयगी
मोट्यार

मोट्यार सूं
बाल़ बच्चादार
गाँव री
घणकरी छोरियां री
बरातां रो
गवाह रैयो
हवनकुंड री
लकड़ियां बण्यो
यो पीपल़
अणीज ने
पूजती रैयी
गाँव री
तमाम छोरियां
सैवट में
उण नै पण
विदा होवती
छोरियां रो
मारग लेवणो
पड़ियो

अरणीज’रे
पानां सूं
चेतावता रैया
आग के
‘होरी’अर ‘झबरा’रैं
पूस महिना री
रातां कटै
ठंड रो दुखड़ो
थोड़ो घणो छंटै

अणी ज’ पीपल़ नै
देवता ज्यूं
पूजती रैयी
गवालि़या री
घरवाली़
गाँव री दूजी
लुगायां साथै
बांटती रैयी
सिरदा रा फूल
गवालि़या री
कुराड़ी पीपल़ रा
डाल़ा
काटती रैयी

कुराड़ी
अर काल़ रा
चक्कर में
पीपल़ री
रगरग
दुखती रैयी
उण री
भरीपूरी काया
सूखती रैयी

पीपल़
आज
कीकड़ पैलवान
वण्यो
ऊभो है
विदा री
अणी
दुखदायी घड़ी में
गाँव वाला़
पीपल़ नै
घेर नै
ऊभा है क’
पीपल़
लोगां ने
सीख री
आखरी बात कैवे
गांव रा दूजा
रूंखड़ा रे
एरे-मेरे
पीपल़ नीं
वैवा री
बात
आज ताईं
गूंजती रैवे ।