Last modified on 20 जून 2014, at 06:33

अन्दाता रो भाग / कुंदन माली

सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:33, 20 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुंदन माली |संग्रह=जग रो लेखो / कुं...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अन्दाता सूं बस्ती मुल़कै
अन्दाता सूं नगरी हरखै
अन्दाता सूं हालै रूंख
अन्दाता मत जाज्यो चूक

अन्दाता मोटर में बैठे
अन्दाता आभै पे लेटै
अन्दाता सूं है कल़पाण
भांत-भांत रा बसिया लोग
अन्दाता थे लीज्यो छाण

अन्दाता री चोखी बोली
अन्दाता री चोखी टोल़ी
घरां आय बैठी है होल़ी
अन्दाता थे दीज्यो ध्यान

अन्दाता री काया जबरी
अन्दाता री निजर गजब री
अन्दाता उलट्या है लोग
अन्दाता क्यूं उलट्या लोग ?

अन्दाता रै भूत कमावै
अन्दाता जग नै बिलमावै
अन्दाता थे पैली बार
धरो म्यान में क्यूं तलवार ?

अन्दाता बस्ती है जागी
अन्दाता री नींदा भागी
अन्दाता रै घरां पूगियो
इणी भांत रोपैलो फाग
अन्दाता ओ कैड़ौ भाग ?