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सुभाव / कुंदन माली

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थूं रोलै थूं रींकलै
करलै थूं संताप
माया तो मन-मोवणी
काया री कांई ंछाप

थारो घर थारो हरख
थारो मेल़-मिलाप
साथै कांईं नी आवणो
समझै आपूं आप

धन चूंट्यो धोयो धरम
मोटी बांधी गांठ
अेक-अेक कर छूटगो
थारी बात-समात

कणकी भर नीं गांठियो
मौको सम्पट प्रेम
डब डब आंख्यां देखलै
अबखो आयो टेम

काजल़ नै कासी कियो
अर माटी नै रेत
करमां नै किचड़ कियो
अर कांकड़ नै खेत

सुरजण नै दुरजण किया
करी झंूठ नै सांच
सूरज नै ले बोलिया
तो नीं आई आंच

झोली डंडा लूटिया
लूट्या सुख जस मान
ताला़ कूंची ठौकिया
किण रो मान गुमान ?

चार दिसावां कांपगी
इण में कांईं सोग ?
धरती खूणै बैठगी
पण नीं धाप्या लोग !