भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अन्दर से लाड्डो बाहर निकलो / खड़ी बोली
Kavita Kosh से
Rameshwarkamboj (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 19:00, 21 दिसम्बर 2007 का अवतरण
रचनाकार: अज्ञात
~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~
अन्दर से लाड्डो बाहर निकलो
कँवर चौंरी चढ़ गयौ
होय लो न रुकमण सामणी ।
-मैं कैसे निकलूँ मेरे कँवर रसिया
लखिया सा बाबा मेरी सामणी ।
तेरे बाबा को अपणी दादी दिलादूँ
होय लो न रुकमण सामणी ।
-मैं कैसे निकलूँ मेरे कँवर रसिया
लखिया सा ताऊ मेरी सामणी
तेरे ताऊ को अपणी ताई दिलादूँ
होय लो न रुकमण सामणी
-मैं कैसे निकलूँ मेरे कँवर रसिया
लखिया सा भाई मेरी सामणी
तेरे भाई को अपणी बाहण दिलादूँ,
होय लो न रुकमण सामणी
-मैं कैसे निकलूँ मेरे कँवर रसिया
लखिया सा बाबुल मेरी सामणी
तेरे बाबुल को अपणी अम्मा दिलादूँ
होय लो न रुकमण सामणी ।