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इतिहासों में लिख जाती है / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

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यदि डरे पानी से तो फिर,
कैसे नदी पार जाओगे|
खड़े रहे नदिया के तट पर,
सब कुछ यहीं हार जाओगे|

पार यदि करना है सरिता,
पानी में पग रखना होगा|
किसी तरह के संश‍य भय से,
मुक्त हर तरह रहना होगा|

डरने वाले पार नदी के,
कभी आज तक जा न पाये|
वहीं निडर दृढ़ इच्छा वाले,
अंबर से तारे ले आये|

दृढ़ इच्छा श्रद्धा तनमयता,
अक्सर मंजिल तक पहुंचाती|
मंजिल तक जाना पड़ता है,
मंजिल चलकर कभी न आती|

दृढ़ इच्छा, विश्वास अटल, से,
वीर शिवाजी कभी न हारे,
दुश्मन को चुन चुन कर मारा,
दिखा दिये दिन में ही तारे|

वीर धीर राणा प्रताप से,
त्यागी इसी देश में आये|
पराधीन ना हुये कभी भी,
मुगलों से हरदम टकराये|

रानी लक्ष्मी बाई लड़ी तो,
उम्र तेईस में स्वर्ग सिधारी|
तन मन धन सब कुछ दे डाला,
अंतरमन से कभी ना हारी|

वीर बहादुर बनकर रहना,
वीरों की दुनियाँ दीवानी|
इतिहासों में लिख जाती है,
बलिदानों की अमर कहानी|