Last modified on 22 दिसम्बर 2007, at 09:23

ऐ मेरे दिल कहीं और चल / शैलेन्द्र

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:23, 22 दिसम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलेन्द्र }} Category:गीत ऎ मेरे दिल कहीं और चल ग़म की दुनि...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ऎ मेरे दिल कहीं और चल

ग़म की दुनिया से दिल भर गया

ढूंढ ले अब कोई दिल नया


चल जहाँ ग़म के मारे न हों

झूठी आशा के तारे न हों

इन बहारों से क्या फ़ायदा

जिसमें दिल की कली जल गई

ज़ख़्म फिर से हरा हो गया


ऎ मेरे दिल कहीं और चल....


चार आँसू कोई रो दिया

फेर कर मुँह कोई चल दिया

लुट रहा था किसी का जहाँ

देखती रह गई ये ज़मीं

चुप रहा बेरहम आस्माँ


ऎ मेरे दिल कहीं और चल...