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चारि सखि मिलि / मैथिली लोकगीत
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मैथिली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
चारि सखि मिलि पनियां के गेलिअइ
ओही रे जमुना के तीरे सखी
जलबा भरिइते रामा गगरी फुटिय गेल
गगरी तऽ भेल सकचूने सखी
सुनू सखि अगिली सुनू सखी पछिली
सुनू सखि बिचली समाद सखी
कहबनि ससुरजी के कहती समझयति
बुझाय मोहे देती बात सखी
एतबा वचन जब सुनली ननदी
भइया आगू चुगली लगाबे सखी
तोहरो के धनि भइया विरह के मातलि
गगरी तऽ भेल सकचूने सखी
जयबा काल गगरी फुटिय गेल
धनी केर कौने अपराध सखी
हरबा जोतैये काल फरबा हे टुटि गेल
बीजुवन टूटल कोदारि सखी