भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
डर / कमल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:37, 24 दिसम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=पंजाबी के कवि |संग्रह=आज की पंजाबी कविता / पंजाबी के ...)
|
प्रेतों के वहम के कारण
डर कर
पीछे मुड़ कर नहीं देखा
यकीन नहीं था
कि सुनसान जंगल में
पीछे से आवाज़
तूने दी थी।