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देरिदा की मुस्कान / शुभम श्री

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उसने हमारे दिमागों को
नींबू की तरह निचोड़ दिया है

अवधारणा के जंगल में
भाषा की भूलभुलैया है

भटकाया है हमें इसी फ़्राँसीसी ने
(हालाँकि कम्युनिस्ट मन ख़ुश होता है,
'देरिदा अमेरिका की उपज नहीं है'! )


संरचना और विखण्डन की धूप-छाया में
छींकने लगते हैं विचार
लेकिन सैकड़ों बार 'देरिदा इज मैड' का पाठ करने के बाद भी
प्यार आ जाता है आख़िर में
 
पर अब और नहीं
देरिदा की मुस्कान पर उसे दो धुमक्के लगाने का मन होता है

अब हम सिर्फ़ 'देरिदा फॉर बिगिनर्स' पढ़ेंगे
और खूब हँसेंगे

जटिल अवधारणाओं के प्रति यह बड़ा मूर्ख प्रतिरोध है
फिर भी..