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अेक सौ पच्चीस / प्रमोद कुमार शर्मा
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थारी याद आवै
-देही
जणै तोड़ै अंगड़ाई रातां नै
नावड़ै कुण सांवरा तेरी बातां नैं
तूं ही अक्षर सरूप है
जाग म्हारै चित मांय
-अंधकूप है
गम री चिरळी अणसुणी
-तू तो गेही
थारी याद आवै
-देही।