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अेक सौ बत्तीस / प्रमोद कुमार शर्मा
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कुण मारी मां नैं
-गा नैं
जकी खड़ी करै ही जुगाळी
बा किसी काढै ही संतां नैं गाळी
बापड़ी सुरता मांय सबद बणै ही
दूध प्या'र कळजुग मांय मिनख जणै ही
अैड़ी भोळी-ढाळी मायड़ भौम नैं
कुण सूंपदी अबकै अंगरेजां री कौम नैं
ढाणी-ढाणी जीवण गोडी ढाळै है
मानै कोनी भाखा, सत् री पाग उछाळै है
पण :
अेक दिन मरतोड़ी भाखा सरजीवण हूसी
च्यारूं कूंट मायड़ नैं नीवण हूसी
रोक'र दिखावै ईं रै
-रा नैं।
कुण मारी मां नैं।