भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अेक सौ चाळीस / प्रमोद कुमार शर्मा
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:30, 4 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रमोद कुमार शर्मा |संग्रह=कारो / ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
बारणै बिचाळै ऊभो हूं
होवसी कोई तो उण पार
जको म्हारी बोली पिछाणसी
करसी दवा म्हारी पीड़ री
म्हांनै के चिंत्या है भीड़ री
अेक स्याणो ई काफी है
ओरां सूं माफी है।