भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अेक सौ अड़ताळीस / प्रमोद कुमार शर्मा
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:33, 4 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रमोद कुमार शर्मा |संग्रह=कारो / ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
म्हैं मांस रो पिंड
म्हारी के ओळखाण
छोड अेक नाजोगी भाखा
दिखावती फिरै जकी दिन-भर आखा
फेरूं भी स्याणा काणा हूग्या
हूंवता थकां सुजाखा
समझै कुण जूनी फड़द रो मरम
कमेड़ी ज्यूं कूकती फिरै रिंधरोही मांय
सत नीं सूझै मायड़ री सुरता नैं
म्हारी नस-नाड़्यां रै लोही मांय
बा कुरळावै
पण असंवैधानिक नैं हक कुण दिरावै।