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अेक सौ छप्पन / प्रमोद कुमार शर्मा

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ढूकै बारम्बार
-मन
तन री अकूरड़ी पर खावै गुळाटी
पढै उलटी पाटी

सबदबायरो हो'र
जीयाजूण काटी
पण अकूरड़ी तो अकूरड़ी है
बठै किस्यो
-धन
ढूकै बारम्बार
-मन।