भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इकाणवै / प्रमोद कुमार शर्मा

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:11, 4 जुलाई 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रोळो भोत मचाती
-काकी
चाकी पर जे जम जावती धूड़
बोलती कोई बीनणी सरे आम कूड़

पण अबै :
चाकी री ठौड़ रेडिमेट आटो है
अर बीनण्यां नैं भी किस्यो
-कपट रो घाटो है

इण वास्तै :
घर-घर मांय कांस है
भाखा नैं अड़कांस है
नीं रैयो सत्
-बाकी
रोळो भोत मचाती
-काकी।