भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
...और अपना काव्य... / रामकुमार कृषक
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:35, 24 दिसम्बर 2007 का अवतरण
काव्य/दुख को नापने का
एक पैमाना पुराना
आज भी बदला नहीं है
दुख कितना हो पराया
काव्य का है
काव्य अपना/ और अपना काव्य
दुख का है...
दुख
जिसकी आँख में है
आग-पानी
झूठ है जिनकी अदावत की कहानी
सच, समन्दर में छुपे ज्वालामुखी
सुख है जगाना
दुख यों बदला नहीं है ।
( रचनाकाल : 04.11.1979)