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...और अपना काव्य... / रामकुमार कृषक

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काव्य/दुख को नापने का

एक पैमाना पुराना

आज भी बदला नहीं है


दुख कितना हो पराया

काव्य का है

काव्य अपना/ और अपना काव्य

दुख का है...


दुख

जिसकी आँख में है

आग-पानी

झूठ है जिनकी अदावत की कहानी


सच, समन्दर में छुपे ज्वालामुखी

सुख है जगाना

दुख यों बदला नहीं है ।


( रचनाकाल : 04.11.1979)