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यह जाते दिसम्बर की आवाज़ है / चन्द्रकान्त देवताले

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रचनाकारः चन्द्रकान्त देवताले

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देवियो और सज्जनो!
चिड़िया की फुदक जितनी शाम
और कुहरे के धब्बों में उड़ती ओझल हो रही हंस-पताकाएँ
सड़कों पर रेंगती हुई
रोशनी से कुचलती परछाइयाँ
और एक वर्ष
जिसका रंग आप ही बतायें
शहीद हो रहा है दुम दबाकर

चुप्पी हमारे साथ है
हर तरह के जाड़े में समाकर
शब्दों को जेलख़ाना बनाकर
चुप्पी जंगलों से रिहा हो रही है
फिर भी एक आहट है
जूते-चोर के जाते वक़्त की
सबसे धीमी कराहती आहट

देवियो, आपके भीतर स्वेटर बुन रही है
क्या आप बता सकती हैं
हरी पत्तियाँ कितने बजे कहाँ सूखने लगती हैं
सज्जनो, नोट का छापाख़ाना
वहाँ शुरू होता है
जहाँ धरती ख़त्म होने लगती है
और आप नहीं जानते
धरती का सुनायी न देना
कितना ख़तरनाक है
घड़ी की दँतकड़ी बँध गयी है
कौन कर लेगा दुरुस्त इसे
जो भी आया ठीक करने
घबरा रहा था
अपनी बटन के टूटने के भय से

घड़ी विभाग के नये अध्यक्ष
चूहे का चेहरा टाँगकर अपने धड़ पर
टाई की गठान ठीक कर रहे हैं
विचारों में मच्छरों के प्रवेश से वे खिन्न हैं
वे शोधरत हैं रेत पर पड़ी मेंढकियों के
अपशकुन को देखकर चिन्तित हैं--
'हो न हो राष्ट्राध्यक्ष को जुकाम होगा'
और उनका एक दूत
ठिठुरती घड़ी पर काला परदा गिरा रहा है
और दूसरा दूत
आतँक के काले छह पत्थरों पर
'शु भ का म ना एँ'--लिखकर
नेपथ्य में चला गया है

कछुए की पीठ पर
फूलदान सजाकर
जो बैठा था
वह कछुए के खिसकने और
जल में धँसने से चिल्ला रहा है

निष्करुण और डूबती हुई
यह जाते दिसंबर की आवाज़ है...

देवियो, इस आवाज़ के लिए
एक मफलर बना दें
सज्जनो, इसे सुँघा दें
धरती के टुकड़े की कोई गंध

या फिर बता दें पता मेरे जूते का
ढूँढ रहा हूँ कब से ले गया न जाने कौन
देखा होगा ज़रूर आपने जूता-चोर
उसमें रखी हुई थी
मेरी बची-खुची आत्मा
पैरों और जूतों के बीच
पता नहीं कौन-सा फ़ासला है
शायद बिछी हुई है पूरी रक्तहीन अँधेरी रात
सचमुच शर्मनाक होगा कितना
इस तरह नंगे पैरों
जनवरी से मुख़ातिब होना