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दिन नहीं फिरते / रामकुमार कृषक

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फिर रहे हम ही

दिनों में,

दिन नहीं फिरते


दिन...

कि जिनके पाँयताने और

सिरहाने/ अंधेरा है

कि जिनका रात से

सम्बन्ध गहरा है


घिर रहे हम ही

दिनों में

दिन नहीं घिरते


दिन...

कि जिनका बाप पुजता रोज़

सिर चढ़कर हमारे ही

कि हम होंगे खड़े

ख़ुद के सहारे ही


गिर रहे हम ही

दिनों में

दिन नहीं गिरते ।



(रचनाकाल : 11.02.1978)