भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बेबीलोन के खण्डहरों में-1 / जगदीश चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:03, 7 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगदीश चतुर्वेदी |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)
अम्मान (जार्डन) से बग़दाद जाते हुए
यह विशाल मरुस्थल
कभी समाप्त भी होगा या नहीं
एक मरणान्तक चुप्पी में तैरता हुआ मरूप्रदेश
मेरी आँखों को काटता हुआ
चाँदनी में डूबा हुआ है ।
जार्डन का ख़ूबसूरत शहर
बहुत पीछे छूट गया है
अम्मान को देखकर शिमला की
पहाड़ियाँ याद आ गईं थीं ।
पर यह मरूस्थल कभी समाप्त नहिं होगा
कभी समाप्त भी होगा या नहीं...
पूरी रफ़्तार से भाग रही है लम्बी हडसन कार
हम चार यात्री
चले जा रहे हैं
अरब की लम्बी यात्रा पर
विशाल मरूस्थल से गुज़रते हुए ।
प्रतीक्षा में हूँ
फिर कब होगा सवेरा
और हम हारुन-उल-रशीद के
शहर में होंगे
साथ होगी टाइग्रिस
और उसके किनारे पर
झूलता हुआ बग़दाद ।