भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सहस्रदल कमल / त्रिलोचन
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:28, 25 दिसम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोचन |संग्रह=ताप के ताये हुए दिन / त्रिलोचन }} जब तक ...)
जब तक यह पृथ्वी रसवती है
और
जब तक सूर्य की प्रदक्षिणा में लग्न है,
तब तक आकाश में
उमड़ते रहेंगे बादल मंडल बाँध कर;
जीवन ही जीवन
बरसा करेगा देशों में, दिशाओं में;
दौड़ेगा प्रवाह
इस ओर उस ओर चारों ओर;
नयन देखेंगे
जीवन के अंकुरों को
उठ कर अभिवादन करते प्रभात काल का ।
बाढ़ में
आँखो के आँसू बहा करेंगे,
किन्तु जल थिराने पर,
कमल भी खिलेंगे
सहस्रदल ।