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बरसाती रात / त्रिलोचन

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आई थीं घटाएँ अभी

नाच कर चली गईं

बिजली का मशाल जल-जल कर

बुझ जाता था

हवा सनसनाती थी

पेड़ों के पत्तों के बीच से

निकलते समय


केवल रिमझिम का संगीत सुन पड़ता था

बूंदों की छनकारें

ऒलतियों की टप-टप टपकारें

पानी का कल-कल करते

बहते ही जाना


ऎसे में कानों से सुनता था

मंद स्वर

जिन्हें कई साल हुए

ऎसी ही रात को सुना था

ठंडे बातास से या

सुधि की लहरों से

रोमांच हो गया ।