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फिर न हारा / त्रिलोचन
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मैं तुम्हारा
बन गया तो
फिर न हारा
आँख तक कर
फिरी थक कर
डाल का फल
गिरा पक कर
वर्ण दृग को
स्पर्श कर को
स्वाद मुख को
हुआ प्यारा ।
फूल फूला
मैं न भूला
गंध-वर्णों
का बगूला
उठा करता
गिरा करता
फिरा करता
नित्य न्यारा ।