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काई हरियाई फिर / त्रिलोचन

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काई हरियाई फिर

पी पी कर पानी


कुछ दिन की धूप ने

जला कर इसे

स्याह बना दिया था

हठ लेकर इसने भी भीत पर

अपना घर किया था

फिर बादल गरजे

फिर प्रीति नई मानी


जीवन जड़ के ऊपर छा गया

जहाँ रंग न था रंग आ गया

बरसाती धरती ने

साज सजे धानी ।