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मैंने जो सोचा था / त्रिलोचन

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मैंने जो सोचा था

वह नहीं हुआ


सोचा था, सब मेरे है

वे सब क्यों मुझको

जैसे अहेर घेरे हैं;

आसमान से

बचने की मांगी दुआ


हैं मानव इतने सारे

क्यों ये असहाय हुए

अलग अलग हारे

चिन्ताओं ने

मेरे ही मन को छुआ


जैसे हो चलना तो है

भले कुछ न हो संभर

वही कम नहीं है जो है

एक ओर खाई है

एक ओर कुँआ