भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पैरों के आसपास / त्रिलोचन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:42, 26 दिसम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोचन |संग्रह=ताप के ताये हुए दिन / त्रिलोचन }} मन अब ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मन अब जो मांगता है

यदि वह नहीं होता

तो उदास होता है


जो मिलने का नहीं

अगर वही मांगा

तो मांगने वाले ने

चेत अधर में टांगा

आसरे आसरे

जी हताश होता है ।


इन्द्रधनुष कितने

इच्छाओं के

बन बन कर मिटते हैं

साँवली घटाओं के ।

कीचड़ ही पैरों के

आसपास होता है ।