भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गधे की याद / त्रिलोचन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:16, 26 दिसम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोचन |संग्रह=ताप के ताये हुए दिन / त्रिलोचन }} गधा प...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गधा पड़ा था, जान न थी । मालिक उदास था ।

लोथ देखते मुझ से बोला, बड़ा भला था

बेचारा ! इसका दम रहते, काम चला था

अपना अच्छी तरह । लगा, ग़म उसे ख़ास था ।


समझाने के लिए कहा मैंने, ले लेना

कोई और । जानता था मैं भी । पैसे हैं,

नया ले सकेगा । उसाँस बोला, कैसे हैं

आप ? नयों को नहीं जानते, खूँटा देना


इन्हें सरल है, ये कब उसे उखाड़ कर भगे

और कहीं मुँह मारा । आप सोचिए आगे,

क्या क्या हो सकता है, उसी समय यदि जागे

कहीं खेत वाला तो आग और भी सुलगे ।


यह अपने कहने में था । डंडे टूटेंगे

किसी नए पर, और तीर मुझ पर छूटेंगे ।