Last modified on 27 दिसम्बर 2007, at 01:45

अंबर कब था / डा.अजय चौधरी

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:45, 27 दिसम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=डा.अजय चौधरी |संग्रह=खिलखिलाहट / काका हाथरसी }} अपने ग़म...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अपने ग़म से हटकर कब था
वो इन्साँ पैग़ंबर कब था
जिसके बूढ़े सर पर पत्थर
बचपन उसका पत्थर कब था
कातिल की आँखों में रहता
रोती माँ का मंज़र कब था
प्यास समझता क्या औरों की
प्यासा रहा समंदर कब था
रोज बनानी थी छत उसको
उसके सर पर अंबर कब था