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झील में / प्रेमशंकर शुक्ल
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झील में
पानी के बुलबुले
ख़ुशी के --
ख़्वाब के
गीत गुनगुनाकर बुझ गए
क्षणभर की
अपनी इस हैसियत पर
बहुत द्रवित हुआ पानी
तभी से --
दर्द भरे गीतों को सुनकर
आँख की कितनी भी गहराई में हो पानी
छलक आता है बनकर आँसू
और गीतों में दर्द का रंग
गाढ़ा करता रहता है