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सूर्य मगन है / प्रेमशंकर शुक्ल

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सूर्य मगन है
अपने गगन में

बड़ी झील
अपने पानी में
ध्‍यानस्‍थ

किनारे दुपहर की
झपकी ले रहे हैं

बासन्‍ती धूप
पानी से लिपटी पड़ी है

डूबकर इन्‍हें निहारने में
मर्यादा है
खाँसने तक से
सुन्‍दरता का यह ताना-बाना
तार-तार हो जाएगा