रेड रिबन एक्सप्रेस / बुद्धिनाथ मिश्र
रेड रिबन एक्सप्रेस
घूमि रहल अछि चारू दिस
अश्वमेधक घोड़ा जकाँ।
घराड़ी-बरारीक देवालकें
‘आखी’ लत्ती जकाँ छेकने
लाल तिकोनकें
धकिया रहल छै रेड रिबन।
साम्प्रदायिक रामायणक अन्त्येष्टि क’ क’
स्कूलक मास्टरजी चटिया सभकें
पढ़ा रहल छथिन-कामायन।
कोना सात फेराक लपेटसँ उन्मुक्त भ’
यौन-सुख प्राप्त करी-
नवका फुक्कासँ,
ज्ञान द’ रहल छथिन मास्टरजी
बुझा रहल छथिन-डासग्रामसँ, थ्योरीसँ
नहि बुझला पर प्रैक्टिससँ।
मैकालेक बनाओल
स्कूलक चारू कात
कटि रहल छै मेहदीक वंश
बढ़ि रहल छै नागफेनीक बेढ़।
विषवृक्षक छाँहमे
योगक पटिया उनटा क’
यौन-शिक्षा देल जाइछ।
एकटा सांस्कृतिक धूर्ततासँ
कसल जा रहल अछि ब्रह्मचर्यक
समस्त ज्ञानतन्तु।
फगुआ-देबारीसँ बेसी
पुनीत पर्व अछि एड्स दिवस।
नवताक आवेशी डिप्टी साहेबक
वारण्टी आदेशसँ
केराबक अँकुरी-सन
नान्ह-नान्ह स्कूली छात्र-छात्रा
कण्डोमक प्रचार करैत अछि।
मुँह बबैत बाबा-बाबी
सुनै छथि नव भिक्षु-भिक्षुणीक उपदेश।
एकटा कृत्रिम अदंकसँ ।