हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
रोहतक में पाणी बड्ग्या सुण भैणां हे कोलज में
उडै पड्ढैं दुनिया के लाल जुलम बड़ा भारी हे कोलज में
छोर्यां मैं झांखी पाड़ी एक पट्ढै छोरा हुंसिआर हे कोलज में
ऊं के ऊपर धोला कमीज जुलम बड़ा भारी हे कोलज में
वोह् तो डूब लिया होया जुलम बड़ा भारी है हे कोलज में
ऊं का बूढा बाब्बू रोवै रे मैंने बौत पड्ढाया
मिरे लाल जुलम बड़ा भारी होया हे कोलज में
कोलज में जुलम बड़ा भारी हे कोलज में
ऊं की बूढी माता रोवै हे मनै एक जाया नंद लाल
ऊं की छोटी भैणां रोवै हे कोलज में
मेरै कूण भरेगा भात, जुलम बड़ा भारी हे कोलज में
ऊं की ब्याही तिरिया रोवै हे कोलज में
मनै कर के बैठा गया रांड जुलम बड़ा भारी हे कोलज में