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तूतनख़ामेन के लिए-5 / सुधीर सक्सेना
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मौत आई दबे पाँव
तो आँखें मूंद लीं
तूतनखामेन ने
दुनिया-ज़हान से
मौत है तो ज़िन्दगी नहीं
और ज़िन्दगी है तो
मौत की क्या बिसात ।
सब कुछ था
पर यह सच न था
तूतनखामेन के अपने खजाने में
ज़िन्दगी भर आँखें खोलकर भी
सबसे बड़े सच से
आँखें मींचे रहा
तूतनखामेन ।