भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धूप के निशान / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:31, 20 जुलाई 2014 का अवतरण
दिया जले
मन मचले
सुधियों के तले-तले
एक रूप क्या उभरा — छन्द के समान
फैल गए धूप के निशान ।
वनवासी मन के त्योहार
कस्तूरी गन्ध में नहाए
अम्बर के अभिनन्दित गीत
उजली पोशाक पहन आए
थके-थके
जीवन के
वनपंखी स्वर चहके
रेखाएँ खींच गए — धुँधले अनुमान
फैल गए धूप के निशान ।