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इस कमरे की अकेली खिड़की / शहनाज़ इमरानी
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तुमसे मिल कर लगा
तुम तो वही हो ना
मैं अपने ख़यालों में अक्सर
तुम से मिलती रही हूँ
एक ख़याल की तरह तुम हो भी
और नहीं भी
तुमसे बातें यूँ की जैसे
सदियों से जानती हूँ तुम्हे
बिछड़ना न हो जैसे कभी तुमसे
शायद तुम्हें पता न हो
इस कमरे की अकेली
खिड़की तुम हो
मेरी हर साँस लेती है
हवाएँ तुमसे !