Last modified on 27 दिसम्बर 2007, at 14:16

यूरेका / सुधीर सक्सेना

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:16, 27 दिसम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधीर सक्सेना |संग्रह=काल को भी नहीं पता / सुधीर सक्सेन...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


अगर पानी में छपाक से

कूदता नहीं आर्कीमिडीज़

तो भला कहाँ होता

एथेन्स की सड़कों पर

यूरेका...यूरेका... का शोर


लोग सचमुच भूल गए होते

आर्कीमिडीज़ को


फख्र करो

हर आर्किमिडीज़ पर

जिसने खोजा और पा लिया


नफ़रत करो उससे,

जिसने मार डाला,

अपने भीतर के आर्किमिडीज़ को

और तरस खाओ उस पर

जो बन्द कमरे में या सड़क पर

कभी नहीं चिल्लाया--

यूरेका...यूरेका... !