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तीव्र नीली कोलम सिम्फ़नी-3 / दिलीप चित्रे

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उद्दीपन स्वर्ग की इन्द्रियों के
महीन कतारों में प्याज के फाँकों की तरह ।
शायद वीर्य स्खलन के क्षण में
ख़ून की रोशनी भी
तीव्र-कोमल-नीली हो जाती है
जननेद्रियों की तरह बिन्दु पर सुनते हुए गौर से
मरती हुई कनखियों पर दृश्य को
एक अर्थ जिसे नाम नहीं दिया जा सकता
जज़्ब नहीं किया जा सकता
दो शब्दों के बीच सरकती सजगता
जैसे नींद में होश
होता है तीव्र-कोमल-नीला
और इन्द्रिय, शिश्न भग्न, हिजड़े
कामुक हर्ष ध्वनि करते हैं
गाये हुए उस सहवास की आँच से
जो तीव्र-कोमल-नीला है