भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तीव्र नीली कोलम सिम्फ़नी-3 / दिलीप चित्रे

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:06, 21 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिलीप चित्रे |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उद्दीपन स्वर्ग की इन्द्रियों के
महीन कतारों में प्याज के फाँकों की तरह ।
शायद वीर्य स्खलन के क्षण में
ख़ून की रोशनी भी
तीव्र-कोमल-नीली हो जाती है
जननेद्रियों की तरह बिन्दु पर सुनते हुए गौर से
मरती हुई कनखियों पर दृश्य को
एक अर्थ जिसे नाम नहीं दिया जा सकता
जज़्ब नहीं किया जा सकता
दो शब्दों के बीच सरकती सजगता
जैसे नींद में होश
होता है तीव्र-कोमल-नीला
और इन्द्रिय, शिश्न भग्न, हिजड़े
कामुक हर्ष ध्वनि करते हैं
गाये हुए उस सहवास की आँच से
जो तीव्र-कोमल-नीला है