Last modified on 11 अगस्त 2014, at 12:59

टूटते कगार से / रमेश रंजक

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:59, 11 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |अनुवादक= |संग्रह=किरण क...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

      चाँदनी रात हुई जब झील
      झाँकने लगी अनमनी प्रीत
      गीत के टूटे-फूटे शंख
                   लहरियों में अँगड़ाने लगे
                   याद बीते दिन आने लगे

      धुएँ-सी उठी गुनगुनी लहर
      छोड़ अपनी ठण्डी तासीर
      मचलने लगा अधर पर नाम
      भर गई आँखों में तस्वीर
देह के छुए-अनछुए तार तुम्हारे स्वर में गाने लगे

      झुके से कमलानन के पास
      गूँजने लगे मधुर अनुबन्ध
      किनारे पर आ बैठे मौन
      अधजुड़ी छाँहों के सम्बन्ध
चम्पई मौसम के संकेत बुझे शोले दहकाने लगे

      मिली अमृत की स्वीकइति हँसी
      और फिर ज़हरीला इनकार
      मान के बान प्रान को मिले
      कामना को नखरीला प्यार
तभी कंगन के बोल अमोल न जाने क्या समझाने लगे ?