भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पल का सिन्धु / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:50, 13 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |अनुवादक= |संग्रह=किरण क...' के साथ नया पन्ना बनाया)
बैरिन रात कटे, दिन फूटे
राम करे इस अँधियारे पर
ऐसी बिजुरी टूटे
पलकें खोल करी चतुराई
भाज गई निन्दिया हरजाई
दूर खड़ी मुस्काय दिखाए
मेंहदी रचे अँगूठे
पल का सिन्धु मझे ले डूबा
मन भरमाए ऊबा-ऊबा
तन, चन्दन चिन्ता की नागिन
अब सायास न छूटे
मन की उमस, नयन का पानी
बिन बानी कह गए कहानी
तुम क्या रूठे मीत तुम्हारे
सब सम्बोधन रूठे