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एक उमर मुस्कान / रमेश रंजक

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इतनी ही थी अवधि हमारी अनबोली पहचान की
जैसे लाज भरे होठों पर एक उमर मुस्कान की

पल भर का परिचय था लेकिन
सुघर घड़ी तस्वीर-सी
टँगी रही प्यासी आँखों में
आकृति एक लकीर-सी

गन्ध झूलती रही शिराओं में अधखिले विहान की
जैसे आँगन में सुधि झूले बिना रुके मेहमान की

सागर के सिरहाने, अम्बर का
सूनापन ओढ़ कर
खड़ी रही अनमनी विदाई
टूटी ख़ुशियाँ जोड़ कर

प्यास देखती रही दूर तक रेखाएँ जलयान की
जैसे पढ़े रोशनी कोई ग़ज़ल किसी दीवान की