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रविवार का गीत / रमेश रंजक
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काम मिला जो झट-पट कर लो सन्ध्या है शनिवार की ।
कल मैदानों में गूँजेगी जय अपने इतवार की ।।
कल खेलेंगे चोर-सिपाही
देंगे मोटे राम गवाही
नहीं चलेगी तानाशाही
अब्दुल्ला के सिर पर होगी टोपी थानेदार की ।
कल मैदानों में गूँजेगी जय अपने इतवार की ।।
छुक-छुक, छुक-छुक रेल चलेगी
भीड़-भाड़ में सीटी देगी
जो बैठेगा टिकट लगेगी
बिना टिकट वाले पर होगी डिगरी पाँच हज़ार की ।
कल मैदानों में गूँजेगी जय अपने इतवार की ।।
ये अपना लकड़ी का घोड़ा
खाकर इक टहनी का कोड़ा
झट-पट पहुँचेगा अलमोड़ा
जब सरपट दौड़ेगा ऐसी-तैसी होगी कार की ।
कल मैदानों में गूँजेगी जय अपने इतवार की ।।