(राग शिवरञ्जनी-ताल कहरवा)
चाह तुम्हारी ही हो प्यारे! नित्य-निरन्तर मेरी चाह।
चाह न रहे अलग कुछ मेरी, नहीं किसीकी हो परवाह॥
चलता रहूँ निरन्तर, प्यारे! केवल एक तुहारी राह।
बिगड़े-बने जगत्का कुछ भी, कहूँ निरन्तर ‘प्यारे! वाह’॥
(राग शिवरञ्जनी-ताल कहरवा)
चाह तुम्हारी ही हो प्यारे! नित्य-निरन्तर मेरी चाह।
चाह न रहे अलग कुछ मेरी, नहीं किसीकी हो परवाह॥
चलता रहूँ निरन्तर, प्यारे! केवल एक तुहारी राह।
बिगड़े-बने जगत्का कुछ भी, कहूँ निरन्तर ‘प्यारे! वाह’॥