भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अन्धकार का बबूल / महेश उपाध्याय
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:39, 21 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश उपाध्याय |अनुवादक= |संग्रह=आ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
आस-पास झर गया
गुड़हल का फूल
बींध गया देह
अन्धकार का बबूल
एक भीड़ सन्नाटा
गन्धहीन मन
पानी का डूबा-सा
लग रहा बदन
आँखों में कसक रही
धूल सिर्फ़ धूल ।