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दोपहर : नश्तर / महेश उपाध्याय
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ओ मेरे अब ! दूँ तो क्या दूँ तुझे
पास मेरे कुछ नहीं है रे,
सिर्फ़ कुछ हारी-थकी बातें
सुबह की ताज़ी हवा :
कड़वी दवा
दोपहर : नश्तर
शाम : भद्दी गालियों
का नाम
रात : ठण्डा ज्वर
ज़िन्दगी टूटी हुई टहनी
मारती है हवा जिस पर
ठोकरें लातें
पास मेरे कुछ नहीं है रे,
सिर्फ़ कुछ हारी-थकी बातें ।